साहित्य सबके हित को साधता है। परंतु परेशानी यह है कि
इसके द्वारा हित को साधने वाला लेखक किस मनोवृत्ति में है, उस पर यह
निर्भर करता है।
प्राचीन काल से ही आमतौर पर गरीब हित साधने के काम आता
रहा है। यही हाल गरीब बच्चों का बाल साहित्य में है। जो गांव का गरीब बच्चा है, वह
पाठशाला नहीं जाता, मास्टर जी से मार खाता है, जमींदार के बेटे उसका मजाक उडाते हैं। वह ढोर
डंगर चराने का काम करता है। वह अपनी मेहनत से आगे नहीं बढ़ता। उसे आगे बढ़ाने के लिए
या तो कोई जादूगर जादूगरी करता है, या फिर परी या परी रानी आकर उसके दुःख को दूर
करती है।
ऐसा क्यों होता है? इस प्रश्न का उत्तर लिखने वाले के स्वभाव
में छिपा है। कहानी है तो खत्म करनी पड़ेगी। खत्म करने का सबसे आसान तरीका है सुपर
नेचुरल पावर का सहारा लेना। पर इसमें भी परेशानी यह है कि अलौकिक शक्ति पाकर भी ये
गरीब अपना दिमाग नहीं लगाते और नहीं चाहते कि वे अपने बल पर दुष्ट पर विजय प्राप्त
करे।
आजकल जो कहानियां आती हैं, उनके केंद्र में शहरों के बच्चे ज्यादे होते
हैं। उनकी कहानियों में भी जो गरीब बच्चा या बच्ची है, वह उपहास
का पात्र है। वह पढ़ने में अमीर से ज्यादा तेज होगा पर उसका कक्षा में मजाक उड़ाया
जाएगा। अंत में वह कुछ ऐसा करेगा कि अमीर उसके दोस्त बन जाएंगे। यहाँ भी लेखक के
मन की कुण्ठा बाहर आती है। उसके मन के किसी कोने में यह बात घर किए रहती है कि उसे
अमीर के साथ रहना है, उसके बिना
उसका कल्याण नहीं है। क्यों नहीं ऐसी कहानियों के अंत में गरीब के बच्चे के संघर्ष
की जीत होती है?
कुछ कहानियां ऐसी भी होती हैं, जिनके केंद्र में गरीब
बच्चे और गरीबी रहती है। इन कहानियों के पात्र आमतौर पर गरीब ही रहते है। पर ऐसी
कहानियों के अंत में अमीर का प्रवेश होता है और वह उस बच्चे के सारे दुखों को हर
लेता है।
कहानियों के केंद्र से गरीब बच्चों के गायब होने का एक
अन्य कारण भी है।
आज जो भी लिखता है, उसकी दिली इच्छा होती है कि उसका लिखा कहीं
न कहीं छपें। अधिकांश बड़े प्रकाशक अपनी पत्रिकाओं में गरीबी और गरीब को स्थान देने
से परहेज करने लगे हैं। उन्हें लगता है एक गरीब तो उनकी पत्रिका शायद ही खरीदेगा।
ऐसे में वह अमीर खरीदार को केंद्र में रखकर रचनाएं छापता है। आप किसी भी पत्रिका
में डिज्नीलैंड की सैर की कहानी या फोटो फ़ीचर तो पा जायेंगे, पर किसी
में यह फीचर नहीं होगा कि 'गांव की सैर' या 'गांव के तालाब' या 'गांवों की
जिंदगी'।
इसका कारण यह है कि इन फीचर्स को अमीर बच्चे नहीं देखना चाहेंगे। उनके सपना तो
डिज्नीलैंड का सैर है।
आज भी ऐसे लेखक हैं जिनकी कहानियों के केंद्र में गरीब
बच्चे और उनका जीवन है। डॉ प्रकाश मनु जी की कहानियों के केंद्र में आम बच्चे होते
है। उनके पात्रों के नाम भी आज भी गवई होते हैं। ऐसे और भी लेखक हैं।
आज जरुरत है कि कहानियों के पात्रों का वर्गीकरण न किया
जाय। जो गरीब बच्चा है, वह जीत अपने संघर्ष से प्राप्त करे। और उसका संघर्ष तर्क
सम्मत हो। उसकी कहानी लोगों को प्रेरित कर सके।
अनिल जायसवाल 29-3-17
मोबाइल 9810556533
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