Friday, 26 October 2012

देवेंद्र मेवाड़ी बाल साहित्यकार


देवेंद्र मेवाड़ी
(बाल साहित्यकार)

(विज्ञान संबधी विषयों के विशेषज्ञ)


हँसते खिलखिलाते देवेन्द्र मेवाड़ी

बच्चों के लिए लिखना आसान नहीं। खासकर उनके लिए वैज्ञानिक कथाएं लिखना या उनका विज्ञान से साक्षात्कार कराना और कठिन कार्य है। पर इस काम को क्रियाशील तरीके से बात-बात में या हंसते-हंसाते बच्चों को समझाना हो, तो देवेंद्र मेवाड़ी जैसे साहित्यकार कम ही नजर आते हैं।
देवेंद्र मेवाड़ी का जन्म 7 मार्च 1944 को उत्तराखंड के नैनीताल से आगे कालाआगर गांव में हुआ। उनके पिता श्री किशन सिंह मेवाड़ी एक किसान और पशुपालक थे। मां तुलसी देवी भी घर के साथ-साथ खेती का काम भी करती थीं। देवेंद्र तीन भाई हैं और उनकी एक बहन हैं।
चूकि कालाआगर गांव ठंडे इलाके में था, अत: उनके परिवार वाले दो गांवों में बसे थे। गरमी के दिनों में तो वे कालाआगर में रहते थे। पर जैसे ही ठंड शुरू होती थी, उनका परिवार माल-भाबर के गांव ककोड़ चला जाता था, जो पहाड़ के ही गरम इलाके में था। इस तरह वह छह महीने ऊंचे पहाड़ पर रहते थे, तो छह महीने गरम इलाके वाले दूसरे गांव में। इस तरह बचपन से ही उनका प्रकृति से परिचय हो गया था।
देवेंद्र मेवाड़ी के माता-पिता तो स्कूल नहीं जा पाए थे, पर उनका सपना था कि उनका बेटा स्कूल में जरूर पढ़े। थोड़े बड़े हुए, तो देवेंद्र मेवाड़ी गांव की प्राइमरी पाठशाला में जाने लगे। यह आपको अजीब लगेगा, पर यह सच है कि देवेंद्र मेवाड़ी बचपन में दो पाठशालाओं में पढ़ते थे। यानी गरमियों में वह पहाड़ के गांव कालाआगर में पढ़ते थे और सर्दियों में माल-भाबर की जंगल वाली पाठशाला में। कहने को तो यह पाठशाला थी, परंतु वह तो बच्चों को प्रकृति से मिलाने का एक जरिया थी। वहीं उनका जंगल के जीव जंतुओं से परिचय शुरू हुआ। उनके गांव के आसपास घने जंगल थे।  ऐसा जंगल जिसमें बाघ, तंदुआ, भालू और बारहसिंघे जैसे जानवरों का बसेरा था। अनगिनत रंग-बिरंगे पक्षियों को वहां निहारा जा सकता था। वहीं देवेंद्र मेवाड़ी ने चिडिय़ों की चहचहाहट को समझना शुरू किया, बादलों को बनते देखा, बनकर लोगों और खेतों पर बरसते देखा। बीजों को उगते और फसलों को पनपते देखकर, जो जिज्ञासाएं उनके मन में आती थी, उसे उनके अध्यापक दूर करते थे। तभी उन्होंने ठान लिया था कि वह भी बड़े होकर बालकों के मन में प्रकृति को लेकर उत्पन्न होने वाली उत्कंठाओं को दूर करेंगे। यहीं  देवेंद्र मेवाड़ी  ने ककोड़ की जंगल वाली पाठशाला में पढ़ते समय पहली बार साक्षात जंगल के जांबाज बाघ को देखा था,जो अपनी मदमस्त चाल से चलता हुआ जंगल से निकलकर उनके स्कूल की सामने वाली पहाड़ी तक बच्चों को दर्शन देने आ पहुंचा था।
पांचवीं तक प्रकृति की पाठशाला में पढ़ाई करने के बाद देवेंद्र मेवाड़ी दूसरे गांव के स्कूल में पढऩे चले गए। वहीं जब वह छठी कक्षा में थे, तो मां चल बसीं। पर उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका बेटा देवेंद्र खूब पढ़े-लिखे। मां की इच्छा का देवेंद्र ने खूब ध्यान रखा और गांव वाले स्कूल से इंटर की परीक्षा पास की। फिर आगे की पढ़ाई के लिए नैनीताल चले गए। वहां से उन्होंने अपने मन के अनुरूप वनस्पति विज्ञान में  एम.एससी. किया। फिर अपने भावों को पाठकों तक पहुंचाने के लिए हिंदी में भी एमए.की डिग्री ली। बाद में राजस्थान विश्वविद्यालय से उन्होंने पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा भी लिया।

युवा  देवेन्द्र  

प्रकृति के चितेरे देवेंद्र मेवाड़ी की बीस साल की उम्र में ही पहली कहानी 1964 में युवक मासिक, आगरा में प्रकाशित हुई। उन्होंने पहला लेख 1965 में विज्ञान परिषद, प्रयाग के विज्ञान मासिक में लिखा। तब से, जो उनकी लेखनी ने अपने पाठकों को तृप्त करने का कार्य शुरु किया, वह आज भी और निखरकर पूरे शबाब पर है।
देवेंद्र मेवाड़ी ने आजीविका के लिए आरंभ में अनुसंधान कार्य किए,तेरह वर्ष तक पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में किसानों की पत्रिका 'किसान भारती' का संपादन किया, तो करीब बाईस साल तक पंजाब नेशनल बैंक में जनसंपर्क के वरिष्ठ अधिकारी के रूप में भी काम किया। परंतु बैंक की नौकरी भी उनके अंदर के लेखक को कैद न कर सकी और वह एक के बाद एक बच्चों के लिए लेख और कहानियां लिखते चले गए।
अब नौकरी से अवकाश प्राप्ति के बाद वह पूर्णकालिक लेखक हैं और बच्चों के लिए जोर-शोर से लिख रहे हैं।

शायद लिखने की तैयारी है 

देवेंद्र मेवाड़ी की मुख्य कृतियां विज्ञान से संबंधित हैं। बच्चों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए उन्होंने एक किरदार या यों कहे, एक सूत्रधार को जन्म दिया है, जिसका नाम है देवीदा। देवीदा बच्चों के दोस्त हैं। वह बच्चों से घुल-मिलकर उन्हीं की भाषा में बात करते हैं और हंसते-हंसाते उनकी विज्ञान से जुड़ी समस्याओं को दूर करते देते हैं या समझा देते हैं।
देवेंद्र के रचना संसार में बच्चों की उपस्थिति अनिवार्य हैं। वह कहते भी हैं—''मैं जब भी बच्चों के लिए लिखता हूं, तो जैसे वे मेरे आसपास आ जाते हैं। मुझसे बातें करने लगते हैं। बस, उन्हें जो बताता हूं, वही बताते-बताते लेख, कहानी या किताब बन जाती है।''
देवेंद्र मेवाड़ी की पत्नी हैं लक्ष्मी मेवाड़ी। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है।

पत्नी के साथ

देवेंद्र मेवाड़ी को कई पुरस्कार भी मिले हैं। विज्ञान लेखन के लिए उन्हें राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद से 'राष्ट्रीय विज्ञान लोकप्रियकरण पुरस्कार', दो बार सूचना और प्रसारण मंत्रालय  से 'भारतेंदु पुरस्कार' तथा पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का 'मेदिनी पुरस्कार' मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें प्रतिष्ठित 'आत्माराम पुरस्कार' भी मिला है।

देवेंद्र मेवाड़ी की बच्चों के लिए पुस्तकें

1. सौर मंडल की सैर
2. विज्ञान बारहमासा
3. फसलें कहें कहानी (हिंदी और पंजाबी)
4. सूरज के आंगन में
5. विज्ञान जिनका ऋणी है (भाग-१, हिंदी और पंजाबी में)
6. विज्ञान जिनका ऋणी है (भाग-२, हिंदी और पंजाबी में)
7. पशुओं की प्यारी दुनिया

विज्ञान के जटिल विषयों को सहज भाषा में प्रस्तुत करने में सिध्ध हस्त देवेन्द्र जी ने कई पुस्तकों का अनुवाद किया है।

संपर्क सूत्र :

देवेंद्र मेवाड़ी,
सी-22, शिवभोले अपार्टमेंट्स,
प्लॉट नम्बर-20, सैक्टर-6,
द्वारका, फेस-1, नई दिल्ली-110075
फोन : 011-28080602
मोब. 0-9818346064

ई मेल 
dmewari@yahoo.com

-अनिल जायसवाल

रामगढ , उत्तराखंड में स्थित  महादेवी वर्मा संग्राहलय  में एक सम्मलेन में शिरकत करते देवेन्द्र मेवाड़ी

4 comments:

  1. अच्‍छा लगा विस्‍तार से जानना।

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    1. वाह!!! ये नायाब काम कर रहे हैं आप. मेवाड़ी जी के बारे में विस्तार से जानने का अवसर दिया . आभार आपका .

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  2. आप का नाम सुना था. आज आप के बारे में विस्तार सेजां कर प्रसन्नता हुई. बधाई आप को, आप की उप्लब्भियों के लिए.

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  3. सर, यह पुस्तकें कैसे प्राप्त की जा सकती है
    1. सौर मंडल की सैर
    2. विज्ञान बारहमासा
    3. फसलें कहें कहानी (हिंदी और पंजाबी)
    4. सूरज के आंगन में
    5. विज्ञान जिनका ऋणी है (भाग-१, हिंदी और पंजाबी में)
    6. विज्ञान जिनका ऋणी है (भाग-२, हिंदी और पंजाबी में)
    7. पशुओं की प्यारी दुनिया

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